Thursday 11 January 2018

दायित्व और कर्तव्य- सन्दर्भ : जीवन विद्या – एक परिचय

जीवन विद्या –एक परिचय (संस्करण: 2010, मुद्रण-2017)
  • दूसरा महत्वपूर्ण कारण है ‘धर्म संविधान’। सम्पूर्ण धरती के जितने भी धर्म संविधान हैं उसमें यह माना गया है आदमी जो मूलत: पापी, अज्ञानी, स्वार्थी होता है। जबकि वास्तविकता इससे भिन्न होती है। तो पापी को तारने के लिए, अज्ञानी को ज्ञानी बनाने के लिए, स्वार्थी को परमार्थी बनाने के लिए सभी धर्म संविधान अपने-अपने ढंग की युक्तियाँ, चरित्र, कर्तव्य, दायित्व और कर्मकाण्ड आदि कुछ भी बनाये है। यह भी एक बहुत स्पष्ट घटना है। इनका परिणाम क्या हुआ ? अभी तक कोई अज्ञानी ज्ञानी हो गया ऐसा मानव जाति ने पहचाना नहीं। स्वार्थी परमार्थी हो गया ये भी प्रमाण मिला नहीं। पापी पाप से मुक्त हो गया यह भी प्रमाण नहीं मिला। (अध्याय: 1, पृष्ठ नंबर:12)
  • मैं जीतने सम्बन्धों में जीता हूँ अपने दायित्व कर्तव्यों के साथ सार्थक जीता हूँ। (अध्याय: 1, पृष्ठ नंबर: 17)
  • संवेदनशीलता की भंगुरता मानव के जागृत होने के लिए घंटी है, मानव जागृति के लिए प्रेरणा है, मानव जागृति के लिए दिशा है। मेरे लिए, आपके लिए। ये कब उद्गमीट हो कब आप इसको सत्यापित करेंगे ये आप ही सोचेंगे। इसका दायित्व आपका ही है मेरे लिए सब आ गया। तो रोमांचित होना स्वाभाविक है। (अध्याय:4, पृष्ठ नंबर: 117)

स्त्रोत: अस्तित्व मूलक मानव केन्द्रित चिंतन सहज मध्यस्थ दर्शन (सहअस्तित्ववाद)
प्रणेता -  श्रद्धेय श्री ए. नागराज जी 

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