Thursday 11 January 2018

दायित्व और कर्तव्य- सन्दर्भ : मानव संविधान सूत्र व्याख्या

मानवीय संविधान सूत्र व्याख्या (संस्करण:प्रथम, मुद्रण:2007)
  • राष्ट्रीयता 
1. न्याय प्रदायी क्षमता योग्यता, पात्रता सहित कार्य-व्यवहार सहित सहअस्तित्व सहज प्रमाण परम्परा ।
2. मानवीयतापूर्ण आचरण, व्यवहार, विचार का वर्तमान और उसकी परंपरा ज्ञान, विवेक, विज्ञान सहित किया गया दायित्व व कर्त्तव्य निर्वाह । (अध्याय:2 , पृष्ठ नंबर: 19)
  • जागृत मानव परिवार प्रवृत्ति
प्रत्येक जागृत मानव परिवार में एक दूसरे को सम्बन्धों के अर्थ में संबोधन कार्य, कर्त्तव्य, दायित्व, मूल्यों का निर्वाह, परिवार सहज प्रमाण सहित समग्र व्यवस्था में भागीदारी के रूप में अपना पहचान प्रस्तुत किए रहते हैं। ऐसे एक दूसरे के सभी प्रकार के पहचानों को सत्यापित करते हैं। (अध्याय: 5, पृष्ठ नंबर: 50-51)
  • कर्त्तव्य सहज अधिकार
हर नर-नारी जागृति सहज प्रतिभा और व्यक्तित्व में संतुलन को प्रमाणित करना सर्वमानव सहज मौलिक अधिकार सहित कर्त्तव्य है । 
जागृत मानव प्रतिभा- (ज्ञान, विवेक, विज्ञान सम्पन्नता)
1. स्वयं में विश्वास
2. श्रेष्ठता सहज सम्मान में विश्वास
3. ज्ञान-विवेक-विज्ञान रूपी प्रतिभा में विश्वास
4. मानवीयता पूर्ण आहार-विहार-व्यवहार रूपी व्यक्तित्व में विश्वास 
5. व्यवहार में अखंड सामाजिक होने में विश्वास 
6. उत्पादन कार्य रूपी व्यवस्था, परिवार सहज आवश्यकता से अधिक उत्पादन करने में विश्वास 
उपरोक्त सभी का अभिव्यक्ति, संप्रेषणा, प्रकाशन हर नर-नारी में, से, के लिए मौलिक कर्त्तव्य व अधिकार है। (अध्याय: 6, पृष्ठ नंबर:66-67) 
  • साथी-सहयोगी - कर्त्तव्य दायित्वों को निष्ठापूर्वक निर्वाह करने के अर्थ में संबंधों का निर्वाह करना मौलिक अधिकार है । (अध्याय: 6, पृष्ठ नंबर: 74)
  • सम्बन्ध सहज पहचान -
♦    पोषण प्रधान संरक्षण के रूप में माता का दायित्व-कर्तव्य के रूप में प्रमाण ।
♦ संरक्षण प्रधान पोषण रूप में पिता का दायित्व कर्त्तव्य प्रमाण मौलिक अधिकार है। (अध्याय:6, पृष्ठ नंबर: 75)
  • मानवीय संस्कृति सभ्यता का अधिकार
अनुभव मूलक अभिव्यक्ति संप्रेषणा
सम्बन्ध-मूल्य                निर्वाह परम्परा 
मूल्यांकन-उभयतृप्ति     निर्वाह परम्परा
व्यवस्था सहज -            निर्वाह परम्परा
दायित्व -                       निर्वाह परम्परा इन्हें कलात्मक विधि
कर्त्तव्य सहज-              निर्वाह परम्परा से प्रस्तुत करना  
पूर्णता के अर्थ में किया गया निर्वाह परम्परा
जागृति पूर्वक जीने की कला व कृतियों के रूप में निर्वाह परम्परा
क्रिया पूर्णता, मानव मूल्य, चरित्र, नैतिकता सहित सर्वतोमुखी समाधान प्रमाण के रूप में वर्तमान होना-रहना ही है । 
जागृत मानव जीने का प्रमाण परम्परा ही मानव संस्कृति सभ्यता सहज मौलिक अधिकार है।(अध्याय:6 , पृष्ठ नंबर:86)
  • हवा के साथ मानव का सम्बन्ध बना ही है । प्राण वायु अर्थात् मानव तथा जीव-संसार जिस प्रकार के हवा के कारण सांस ले पाते हैं , इसकी प्रचुरता-पवित्रता को बनाये रखना मानव कुल का कर्त्तव्य है। (अध्याय: 6, पृष्ठ नंबर:88)
  • धरती पर अन्न, वन, वनस्पतियों, वन्य प्राणियों और जीवों का सम्बन्ध एवं वन ही इनके आवास स्थली के रूप में धरती पर वर्तमान है। मानव सहज वैभव होने का आधार भी धरती है, इसलिए इसका सन्तुलन आवश्यक है । धरती अपने शून्याकर्षण स्थिति-गति स्वरूप में संतुलित होने के आधार पर ही प्राणावस्था के सम्पूर्ण प्रकार की वनस्पतियाँ, जीव-संसार और ज्ञानावस्था में मानव का होना पाया जाता है । इनमें सन्तुलन बनाये रखना जागृति है । यह विज्ञान विधा का महत्वपूर्ण दायित्व है । (अध्याय: 6, पृष्ठ नंबर: 88) 
  • जीव संसार की सुरक्षा व नियंत्रण-संतुलन मानव परंपरा के लिए अनिवार्य कर्त्तव्य है। (अध्याय:6 , पृष्ठ नंबर:89)
  • ज्ञान-विवेक-विज्ञान पूर्ण विधि से सामाजिक अखण्डता व्यवस्था सहज सार्वभौमता के अर्थ में सोच-विचार-निर्णय सहित कर्त्तव्य -दायित्व पालन पूर्वक व्यवहार करने का अधिकार। (अध्याय:6 , पृष्ठ नंबर:95)
  • उद्देश्य-दायित्व- कर्त्तव्य
मानव का कर्त्तव्य जागृति के पश्चात प्रारंभ होता है। हर नर-नारी जागृति सम्पन्न होने का स्त्रोत शिक्षा-संस्कार कार्य परंपरा है । जागृत मानव होने से ही कर्त्तव्य दायित्व सार्थक होता है। जो देश काल परिस्थिति के आधार पर तय होता है। मूलत: मौलिक अधिकार जागृत मानव का कर्त्तव्य है जो स्वयं के प्रति, परिवार के प्रति,  समाज के प्रति, समग्र व्यवस्था के प्रति वरीयता सहित भागीदारी पूर्वक सार्थक होता है । 
    हर नर-नारी जागृति सहज प्रतिभा और व्यक्तित्व को प्रमाणित करना सर्वमानव सहज मौलिक अधिकार सहित दायित्व कर्त्तव्य है ।
      1. सभा में भागीदारी हर नर-नारी करने में समानता मानव-लक्ष्य सर्व सुलभ होना और होने में-से-के लिए सभी सदस्य समान रूप में दायी है । 
      2. हर परिवार में  हर सदस्य समझदार-ईमानदार-जिम्मेदार-भागीदार होना, रहने का उद्देश्य व सफल बनाने का दायित्व समान है ।
      3. सहअस्तित्व दर्शन-ज्ञान, जीवन-ज्ञान, मानवीयता पूर्ण आचरण ज्ञान पूर्वक व्यवस्था गति को बनाये रखने का दायित्व समान है । 
      4. सर्वतोमुखी समाधान सम्पन्नता से ही परिवार से विश्व-परिवार में प्रमाणित होना ईमानदारी व दायित्वहै । 
      5. मानवीयता पूर्ण आचरण प्रवृत्ति जिम्मेदारी का दायित्व होना समान है । 
      6. अखण्ड समाज के अर्थ में दस सोपानीय सार्वभौम व्यवस्था में भागीदारी का दायित्व समान है । 
      7. मानव लक्ष्य परंपरा में प्रमाणित होने का दायित्व समान है । 
      8. मानवीय शिक्षा-संस्कार, न्याय-सुरक्षा, उत्पादन कार्य  सुलभता, विनिमय-कोष  सुलभता, स्वास्थ्य-संयम सुलभता, यही प्रधानत: कार्य सहज उद्देश्य-दायित्व- कर्त्तव्य है। इनमें समानाधिकार है। (अध्याय: 6, पृष्ठ नंबर:97)
                    • आवश्यकताओं की पूर्ति इसलिए संभव नहीं है कि वह अनिश्चित एवं असीमित है। कर्तव्य की पूर्ति इसलिए संभव है कि वह निश्चित व सीमित है। यही कारण है कि कर्तव्यवादी प्रगति शांति की ओर तथा आवश्यकतावादी प्रगति अशांति की ओर उन्मुख है। (अध्याय: 7, पृष्ठ नंबर:98)
                    •  परिवार सभा का स्वरूप :-
                    दस समझदार मानव जिसमें हर नर-नारी सह-अस्तित्व सहज समझदारी-ईमानदारी-जिम्मेदारी-भागीदारी में समानता, जिसका अभिव्यक्ति, संप्रेषणा, प्रकाशन करने में समान अधिकार सम्पन्न परिवार है। 
                    शिक्षा संस्कार कार्य व्यवस्था, न्याय सुरक्षा कार्य व्यवस्था, परस्परता में उत्पादन कार्य व्यवस्था, आवश्यकता से अधिक उत्पादन कार्य व्यवस्था,  विनिमय कार्य व्यवस्था-श्रममूल्य के आधार पर लेन-देन रूप में विनिमय कार्य व्यवस्था, स्वास्थ्य संयम कार्य व्यवस्था सहज समान कर्त्तव्य दायित्व अधिकार रहेगा ।
                    अस्तित्व में इकाइयों के होने का प्रमाण सर्वतोमुखी प्रतिबिम्ब है। परस्पर पहचान ही प्रक्रिया प्रमाण है । 
                    परस्परता में पहचान कार्य-व्यवहार का आधार है एवं प्रेरणा सहित कर्त्तव्य व दायित्व सूत्र व्याख्या है । पूरकता उपयोगिता सहज प्रमाण है । 
                    नेत्रों में सहअस्तित्व सहज प्रतिबिंब आंशिक रूप समायी है । जबकि हर नर नारी में पूरा समझना अध्ययन विधि से सहज है। (अध्याय: 7, पृष्ठ नंबर: 100-101)
                    • ...सम्पूर्ण मानव ज्ञान सम्पन्नता में होना हर जागृत मानव में-से-के लिये दृष्टव्य-ज्ञातव्य कर्त्तव्य बोध होना पाया जाता है। फलस्वरूप न्याय व सुरक्षा सर्व सुलभ होता है । (अध्याय:7 , पृष्ठ नंबर:110)
                    • हर परिवार-समूह-सभा कार्य कर्त्तव्य रत हर सदस्य आत्म निर्भर रहना न्याय है।   (अध्याय: 7, पृष्ठ नंबर:129)
                    • सभायें समितियों की कार्य प्रणालियों व कर्त्तव्यों का निर्धारण-निर्देशन करेगी । उसे हर समितियाँ स्वीकार पूर्वक कार्य व मूल्यांकन करने तथा निरीक्षण करने के अधिकार से सम्पन्न रहेगी, यह न्याय है। (अध्याय:7 , पृष्ठ नंबर:131)
                    • व्यवहार-कार्य में ही भागीदारी, दायित्व- कर्त्तव्यों का निर्वाह का प्रमाण है । यह न्याय है । (अध्याय:7 , पृष्ठ नंबर:133)
                    • मानवीय शिक्षा का प्रयोजन संस्कार मानवीयता में-से-के लिए स्वीकृति को कार्य-व्यवहार में, कार्य-व्यवहार सामाजिक अखण्डता व सार्वभौम व्यवस्था के रूप में प्रमाणित होता है । यह दायित्व हर सदस्यों में समान रहेगा, यही सर्वशुभ है । यही न्याय है। (अध्याय: 7, पृष्ठ नंबर: 134)
                    • ज्ञान-विवेक-विज्ञान पूर्वक दायित्वों की स्वीकृति निश्चय निर्वाह करने में स्वतंत्रता (स्वयं स्फूर्त होना), दायित्व के साथ कर्त्तव्यों का निर्वाह करना न्याय है ।  (अध्याय:7 , पृष्ठ नंबर:134)
                    • दायित्व 
                    मानवीय शिक्षा स्वीकृति अर्थात् सहअस्तित्व तथ्य को सहज रूप में जानना, मानना, पहचानना, निर्वाह करने के रूप में दायित्व होना न्याय है । 
                    स्वीकृतियाँ जानने व मानने के रूप में, सोच-विचार-निर्णय विवेक-विज्ञान के रूप में, आचरण (कार्य-व्यवहार) मानवीयता के रूप में पहचान-निर्वाह के रूप में, व्यवस्था स्वयं स्फूर्त कर्त्तव्य -दायित्व रूप में, संस्कृति उत्सव के रूप में, स्वीकृतियाँ जागृत समाज परस्पर अर्पण समर्पण के रूप में, सभ्यता व्यवस्था में भागीदारी के रूप में, संविधान आचरण के अर्थ में, व्यवस्था सार्वभौमता (सर्व शुभ व स्वीकृति) के रूप में न्याय है । (अध्याय: 7, पृष्ठ नंबर:135-136)
                    • दायित्व 
                    जिन सदस्यों ने न्यूनतम से अधिक राशि खाते में रखी है, उनकी सहमति से, विनिमय कार्य के लिए आवश्यकता पड़ने पर, विनिमय कोष, उस धन राशि का उपयोग करेगा व अन्य राष्ट्रीय कृत बैंक से जो ब्याज मिलता है वह उनको देगा। यह विधि तब तक रहेगी, जब तक बैंक विनिमय-प्रणाली अलग-अलग रहेगी ।
                    गाँव से सभी प्रकार की कर वसूली का दायित्व विनिमय कोष का होगा। कर निर्धारण का कार्य ग्राम सभा करेगी।
                    उपरोक्त बैंक का गारन्टीदार राष्ट्रीय कृत सहकारी बैंक होगा जो आरंभ से उसे कार्यशील पूंजी व अन्य ऋण देगा,  हानि की भरपाई करेगा । विनिमय कोष ही आगे अपने सदस्यों को ऋण देगा वह उत्पादित वस्तुओं के रूप में विनिमय बैंक का ऋण लौटा देगा ।
                    विनिमय कोष शनै:-शनै: सरकारी बैंक से ली गई पूंजी को लौटाता रहेगा। इस तरह सरकारी बैंक के रूपये का ज्यादातर उपयोग होगा । (अध्याय: 7, पृष्ठ नंबर: 161) 
                    • स्वास्थ्य संयम कार्य व्यवस्था समिति
                    ग्राम स्वास्थ्य समिति : कार्य एवं दायित्व 
                    ग्राम के सभी व्यक्तियों के स्वास्थ्य एवं संयम की जिम्मेदारी ग्राम स्वास्थ्य समिति की होगी । यह समिति शिक्षा संस्कार समिति के साथ मिलकर कार्य करेगी । आवश्यकतानुसार  स्वास्थ्य संयम संबंधी पाठ्यक्रम और कार्यक्रम को तैयार कर शिक्षा में सम्मिलित कराएगी । ग्राम में चिकित्सा केन्द्र की व्यवस्था, योगासन, व्यायाम, अखाड़ा, खेल कूद व्यवस्था, स्कूल के अलावा खेल मैदान (स्टेडियम), सांस्कृतिक भवन क्लब आदि व्यवस्था का दायित्व ग्राम स्वास्थ्य समिति का होगा। समिति स्थानीय रूप से उपलब्ध जड़ी-बूटियों द्वारा औषधि बनाने के लिए आवश्यकीय व्यवस्था करेगी। इसके साथ ही पशु चिकित्सा केन्द्र की व्यवस्था का दायित्व भी स्वास्थ्य समिति का होगा । समिति ‘‘समन्वित चिकित्सा’’ (आयुर्वेद, एलोपैथी, होम्योपैथी, यूनानी, योग, प्राकृतिक, मानसिक) के उन्नयन की व्यवस्था करेगी । 
                    सब ग्राम वासियों को स्वास्थ्य, व्यवहार, आचरण सम्बन्धी मूल्यों का मूल्यांकन, उपयोगिता व प्रयोजन मूलक पद्घति से समिति व्यवस्था प्रदान करेगी । अलंकार, प्रसाधन कार्य, शरीर स्वच्छता, महिलाओं व बच्चों को रोग-निरोधी उपाय, और सीमित व संतुलित परिवार के रूप में व्यवहृत होने के लिए व्यवस्था प्रदान करेगी । ऐसी जागृति के लिए व्यापक कार्यक्रम को समिति संचालित करेगी । सामान्य रूप में घटित अस्वस्थता को दूर करने के लिए, घरेलू चिकित्सा में प्रत्येक परिवार को अथवा प्रत्येक परिवार में एक व्यक्ति को प्रवीण बनाने के लिए विभिन्न कार्यक्रम चलाए जाएँगे । घरेलू चिकित्सा से रोग शमन न होने की स्थिति में स्थानीय केन्द्र द्वारा चिकित्सा होगी । वहाँ राहत न मिलने की स्थिति में, निकटवर्ती चिकित्सा केन्द्र में पहुँचाने और चिकित्सा सुलभ कराने की व्यवस्था ग्राम स्वास्थ्य समिति करेगी । चिकित्सा केन्द्र, चिकित्सालय, मातृत्व केन्द्र, प्रसवोत्तर केन्द्र की स्थापना यथा सम्भव ग्राम समूह परिवार सभा द्वारा किये जावेंगे । (अध्याय: 8, पृष्ठ नंबर: 163)
                    • कार्यशैली :- 
                    प्रत्येक ग्राम सभा, ‘‘ग्राम स्वराज्य व्यवस्था” को स्थापित करने के लिए निम्न 5 समितियों का गठन ग्राम सभा से मनोनीत सदस्य करेंगे :-
                    1. मानवीय शिक्षा  संस्कार समिति
                    2. उत्पादन कार्य व सलाहकार समिति
                    3. वस्तु विनिमय कोष समिति
                    4. स्वास्थ्य संयम समिति
                    5. मानवीय न्याय सुरक्षा समिति

                    उपर्युक्त समितियां ग्राम सभा के मार्ग दर्शन के आधार पर कार्य करेंगी । उपरोक्त समितियां क्रम से ग्राम में शिक्षा संस्कार व्यवस्था, उत्पादन कार्य व्यवस्था, विनिमय कोष व्यवस्था, स्वास्थ्य संयम व्यवस्था व न्याय सुरक्षा व्यवस्था को सर्व सुलभ करेगी। उपरोक्त समिति के सदस्यों का मनोनयन ग्राम सभा  करेगी। प्रत्येक मनोनीत सदस्य इन समितियों  के लिए  अंश-कालिक  सदस्य होगा एवं वह अपनी समिति का कर्तव्य एवं दायित्वों का निर्वाह अपने निजी व्यवसाय के अलावा करेगा । वयोवृद्घ स्त्री व पुरुष, जो जीवन-विद्या व वस्तु-विद्या में पारंगत होंगे, उनको समितियों के अंश  कालिक व पूर्ण कालिक सदस्य होने का अवसर रहेगा । प्रत्येक समिति का विस्तृत कार्यक्रम अगले खंडों  में विस्तार से दिया गया है । ग्राम स्वराज्य व्यवस्था के लक्ष्य निम्न होंगे :- 
                    1. गाँव के प्रत्येक नर-नारी को मानवीय शिक्षा-संस्कार से संपन्न करना । 
                    2. प्रत्येक नर-नारी को तकनीकी में निपुणता-कुशलता को सजह  सुलभ करना । 
                    3. प्रत्येक नर-नारी को व्यवहार में सामाजिक होने के लिए ज्ञान-विवेक-विज्ञान सहज शिक्षा संस्कार सर्व सुलभ करना जिससे न्याय सुरक्षा प्रमाणित हो। 
                    4. प्रत्येक नर-नारी को किसी न किसी उत्पादन कार्य में प्रवृत्त प्रोत्साहित करना । 
                    5. उत्पादित वस्तुओं को विनिमय-कोष द्वारा लाभ-हानि मुक्त पद्घति से लेन-देन करने की व्यवस्था प्रदान करना और ग्राम वासियों के लिए आवश्यकीय वस्तुओं को उपलब्ध कराना  विनिमय कोष कर्त्तव्य रहेगा । 
                    6. प्रत्येक नर-नारी को न्याय व सुरक्षा सहज सुलभ कराना । साथ ही सुधारवादी-प्रक्रिया से गलती व अपराध प्रवृत्तियों का निराकरण करना । 
                    7. प्रत्येक नर-नारी को अपने स्वास्थ्य के प्रति आश्वस्त रहने का अवधारणापूर्वक संकल्प बद्घ करना, व्यायाम  व खेलों के लिए प्रोत्साहित करना, संक्रामक रोग-निरोधी उपायों की उपयोगिता से अवगत कराना । साथ ही हर परिवार में सहज व उपकारी चिकित्सा  की व्यवस्था करना । 
                    8. प्रत्येक नर-नारी में स्वयं के प्रति विश्वास, श्रेष्ठता के प्रति सम्मान, ग्राम जीवन, परिवार-व्यवस्था के प्रति विश्वास व निष्ठा उत्पन्न करना । प्रतिभा और व्यक्तित्व में संतुलन रहने में निष्ठा स्थापित करना । 
                    9. प्रत्येक नर-नारी / परिवार अपनी आवश्कता से अधिक उत्पादन करे, ऐसा सुनिश्चित उपाय करना। 
                    10. ग्राम के लिए सामान्य सुविधाओं की व्यवस्था करना । 
                    11. व्यक्तित्व व प्रतिभा का संतुलित उदय हो, ऐसा सुनिश्चित उपाय करना । इसके लिए समझदारी, ईमानदारी, जिम्मेदारी, भागीदारी पूर्वक जीने में निष्ठा सम्पन्न करना । 
                    12. प्रत्येक परिवार में भौतिक समृद्घि व बौद्घिक समाधान साक्षित होने का उपाय करना, समस्त ग्राम वासियों की परस्परता में अभयता व सह-अस्तित्व चरितार्थ होने का सभी उपाय करना।(अध्याय: 8, पृष्ठ नंबर:166-168)
                    • ग्राम मोहल्ला परिवार सभा सदस्यों का कर्तव्य व दायित्व
                    1. समझदारी से समाधान एवं श्रम से समृद्घि सिद्घांत पर ग्राम सभा कार्यक्रमों का क्रियान्वयन करेगा । 
                    2. ग्राम सभा पूर्ण रूप से ग्रामवासियों के प्रति उत्तरदायी होगी। साथ ही वह ‘‘ग्राम समूह सभा’’  के प्रेरणा व उनके द्वारा दिए गए सुझावों पर निर्णय लेगी । 
                    3. सर्वेक्षण, आंकलन व अध्ययन के आधार पर चिन्हित प्रयोजनार्थ प्रत्येक परिवार के लिए  समयबद्घ स्वराज्य व्यवस्था सहज कार्य योजना बनाएगी व क्रियान्वयन के लिए विभिन्न समितियों को आवश्यक निर्देश देगी ।
                    4. ग्राम की पाँचों समितियों के साथ उनके अपने-अपने लक्ष्य प्राप्त करने में पूर्ण सहयोग देगी व उनके लिए जो भी सुविधायें, तकनीकी ज्ञान, विज्ञान आदि की आवश्यकता होगी उसे उपलब्ध कराएगी। 
                    5. ‘‘विनिमय कोष’’ आवश्यकता के आधार पर  राष्ट्रीयकृत बैंक के बीच संयोजन (एजेंसी) का कार्य करेगी । 
                    6. पाँचों समितियों के कार्यों का समय-समय पर मूल्यांकन करेगी व उन्हें आवश्यक निर्देश देगी । 
                    7. सर्वेक्षण, आंकलन, अध्ययन व प्राथमिकताओं के आधार पर ग्राम में सामान्य सुविधाओं की व्यवस्था करेगी । इस दिशा में यदि किसी समिति व अन्य संस्थाओं के सहयोग की आवश्यकता हुई तो उसे प्राप्त करेगी । 
                    8. निम्न सामान्य सुविधाओं की व्यवस्था ग्राम सभा द्वारा की जायेगी- 
                    1. प्रत्येक परिवार के लिए आवास का प्रावधान। इसके लिए स्थानीय व्यक्तियों व वस्तुओं का अधिक से अधिक उपयोग किया जावेगा । 
                    2. सस्ती शोधन विधि द्वारा शुद्घ व पवित्र पीने के पानी की व्यवस्था । 
                    3. जल-मल निकास की व्यवस्था करना एवं कृषि-बगीचा के लिए उपयोग करना।  
                    4. कृषि के साथ पशुपालन आवश्यक होने के कारण ‘‘गोबर-गैस प्लांट’’ द्वारा, गोबर-गैस गाँव में सामूहिक या व्यक्तिगत रूप से उपलब्ध कराना । प्राकृतिक गैस उपलब्ध होने की स्थिति में उसका सर्वाधिक उपयोग करने की प्रणाली को विकसित करना । 
                    5. गोबर खाद का कंपोस्ट खाद के लिए व्यापक व्यवस्था  करना ।
                    6. सौर-ऊर्जा का सर्वाधिक प्रयोग करने की प्रणाली विकसित करना ताकि उसका उपयोग पानी पंप करने, खाना पकाने, वाष्पीकरण, अनाज सुखाने, ठंडा या गर्म करने में किया जा सके, जिससे लकड़ी, कोयला  आदि परंपरागत ईधनों को जलाने से रोका जा सके । इसी संदर्भ में पवन चक्की व जल प्रवाह शक्ति की उपयोगिता  की संभावना का पता लगाना व क्रियान्वयन करना, बॉयोडीजल स्थानीय स्रोतों से सम्पन्न करना, विविध विधि से ऊर्जा संतुलन होना।  
                    7. प्रत्येक  घर के साथ शौचालय व सामूहिक शौचालय की व्यवस्था करना । शौचालय से बहते पानी को कृषि उद्यान में उपयोग करना । 
                    8. सड़क मार्ग, रेल यातायात व्यवस्था को सुदृढ़ बनाना व निकट की मंडियों व बाजारों को सड़कों से जोड़ना। 
                    9. दूरभाष व दूर संचार सेवा, डाक घर, बैंक, चिकित्सा आदि की व्यवस्था करना । 
                    10. ग्राम के लिए पाठशाला, चिकित्सा केन्द्र विनिमय-कोष के लिए भवन, गोदाम, बहुद्देशीय  भवन की व्यवस्था  करना जो न्याय सभा,  संबोधन सभा, सांस्कृतिक सभा, विवाह व मिलन सभा, प्रार्थना सभा, स्वागत सभा व छाया के अंदर खेलने के लिए उपयोगी रहेगा ।            (अध्याय: , पृष्ठ नंबर: 168-170)
                    • समझदार परिवार समूह व परिवार सदस्य के कर्तव्य व दायित्व :-
                    1. परिवार सदस्य, सदस्यों के साथ व्यवहार, आचरण, स्वास्थ्य, उत्पादन व उत्पादन संबंधी साधनों के संदर्भ में स्वयं प्रामाणिक रहते हुए, उनके अनुरूप सभी सदस्यों को होने के लिए प्रेरणा स्रोत बने रहेंगे । 
                    2. परिवार प्रधान, परिवार के सभी सदस्यों का मूल्यांकन करेंगे। परिवार प्रधान का मूल्यांकन, परिवार समूह सभा करेगा । आचरण के लिए मूल्यांकन का आधार स्वधन, स्वनारी/स्वपुरुष व दया पूर्ण कार्य रहेगा ।
                    व्यवहार के मूल्यांकन का आधार मानव व नैसर्गिक संबंधों व उनमें निहित मूल्यों  की पहचान व निर्वाह से है । 
                    3. परिवार में किसी से गलती होने की स्थिति में सुधारने का कर्त्तव्य परिवार के सभी सदस्यों का होगा । इसमें परिवार प्रधान उभय पक्षीय प्रेरक का कार्य करेगा । उभय पक्ष का तात्पर्य परिवार सदस्य व परिवार समूह सदस्य। 
                    4. परिवार संबंधी समस्त जानकारी, जिसके  आधार पर परिवार के सदस्यों को शिक्षा-संस्कार, उत्पादन कार्य आदि प्रवृत्त व सभी तथ्यों को  एकत्रित कर परिवार समूह सभा व ग्राम सभा को उपलब्ध कराने का कर्त्तव्य परिवार प्रधान  का होगा । परिवार में यदि कोई व्यक्ति, किसी विशेष योग्यता , हस्तकला,   हस्त-शिल्प,   कृषि   व   अन्य   तकनीकी  या साहित्य-कला में माहिर है, तो यह जानकारी भी  ग्राम की संबंधित समिति को उपलब्ध कराएगा । 
                    5. परस्पर परिवारों के विवादों  व उत्पन्न कठिनाइयों के निवारण का दायित्व उन परिवार के प्रधानों व परिवार समूह सभा का होगा । परिवार समूह सभा द्वारा विवाद हल न होने की स्थिति में ही विवाद ‘‘न्याय सुरक्षा समिति’’ के पास होगा। (अध्याय: 8, पृष्ठ नंबर:170-172)
                    • न्याय पूर्ण व्यवहार (कर्तव्य व दायित्व) सर्व विदित रहेगा । (अध्याय: 8, पृष्ठ नंबर:176)
                    • उत्पादन में न्याय :-
                    1. प्रत्येक व्यक्ति द्वारा आवश्यकता से अधिक उत्पादन करना। 
                    2. प्रत्येक व्यक्ति में आवश्यकता से अधिक उत्पादन करने योग्य कुशलता व निपुणता को स्थापित करना, जिसका दायित्व शिक्षा संस्कार समिति को होगा । 
                    3. उत्पादन के लिए व्यक्ति में निहित क्षमता योग्यता के अनुरूप उसे प्रवृत्त करना जिसका दायित्व ‘‘उत्पादन कार्य सलाह समिति’’ का होगा ।
                    4. उत्पादन के लिए आवश्यकीय साधनों को सुलभ करना इसका दायित्व ‘‘विनिमय कोष समिति’’ का होगा । 
                    5. उत्पादन कार्य सामान्य आकाँक्षा (आहार, आवास, अलंकार) महत्वाकाँक्षा (दूर दर्शन, दूर गमन, दूर श्रवण) सम्बन्धी वस्तुओं के रूप में प्रमाणित होना । 
                    6. ‘‘उत्पादन कार्य सलाह समिति’’ व ‘‘विनिमय कोष समिति’’ संयुक्त रूप में सम्पूर्ण ग्राम की उत्पादन सम्बन्धी तादाद, गुणवत्ता व श्रम मूल्यों का निर्धारण करेगी । (अध्याय: 8, पृष्ठ नंबर: 182)
                    • ग्राम सुरक्षा :- 
                    ग्राम सीमा में निहित भूमि का क्षेत्रफल और उस भू-भाग में निहित वन, खनिज, कृषि योग्य भूमि, बंजर भूमि, जल, जल- स्रोत, जल संरक्षण, भूमि संरक्षण, सामान्य सुविधा कार्य को सदुपयोग के आधार पर सुरक्षित करना ग्राम सुरक्षा का तात्पर्य है । 
                    ग्राम से संबंधित वन क्षेत्र और उपयोगी भूमि और स्वामित्व की भूमि ग्राम सभा के अधिकार व कार्य क्षेत्र में रहेगी । यदि कोई वन क्षेत्र व भू-खण्ड किसी गाँव से सम्बद्घ न हो ऐसी स्थिति में उसको किसी न किसी गाँव से सम्बद्घ करने की व्यवस्था रहेगी। ऐसे ग्राम क्षेत्र की सुरक्षा का दायित्व भी ‘‘न्याय सुरक्षा समिति’’ का होगा। (अध्याय: 8, पृष्ठ नंबर: 184)
                    • उत्पादन और विनिमय सुरक्षा :- 
                    1. उत्पादन सुरक्षा :- गाँव में जितने भी प्रकार के उत्पादन सम्बन्धी मौलिकताएँ प्रमाणित होंगी उन सबके सुरक्षा का दायित्व न्याय सुरक्षा समिति का होगा । जैसे किसी उत्पादन कार्य में विशेष प्रकार की मौलिकता अथवा मौलिक प्रणाली अथवा मौलिक औजार, मौलिक विधि जो परंपरा में नहीं रही है, ऐसी स्थिति में उन सबको सुरक्षित किया जाएगा । इन सबसे सम्बन्धित मूल वाङ्ग्मय, डिजाइन, चित्रण, नक्शा, प्रक्रिया, प्रणाली और विधियों को लिपि बद्घ, सूत्र बद्घ कर सुरक्षित करेगा । आवश्यकता पड़ने पर लोकव्यापीकरण कराएगा व पुरस्कार की व्यवस्था करेगा । 
                    2. औषधियों का अनुसंधान, वनस्पतियों का पहचान, ज्योतिष सम्बन्धी अनुसंधान, हस्तरेखा व सामुद्रकि शास्त्र सम्बन्धी साहित्य का अनुसंधान जो परंपरा में नहीं रहा है, उसको उपयोगिता के अनुसार उसकी सुरक्षा का दायित्व ‘‘सुरक्षा समिति’’ का होगा । 
                    3. साहित्य, कला, संगीत, शिल्प में परंपरा की श्रेष्ठता का अनुसंधान, जो परंपरा में नहीं थी, ऐसी प्रस्तुति होने की स्थिति में उसका यथावत् संरक्षण करेगा । 
                    4. खेलकूद, व्यायाम, अभ्यास में परंपरा से अधिक श्रेष्ठता और अनुसंधानों को संरक्षित करेगा । 
                    5. उपरोक्त कार्य के लिए ‘‘न्याय सुरक्षा समिति’’ क्रम से उत्पादन कार्य सलाह समिति, ‘‘स्वास्थ्य संयम समिति’’ ‘‘शिक्षा संस्कार समिति’’ के सहयोग से मूल्यांकन प्रक्रिया सम्पादित करेगा । (अध्याय:8 , पृष्ठ नंबर: 184)
                    • विनिमय में सुरक्षा :- 
                    1. श्रम मूल्यों को उपयोगिता व कला मूल्य के आधार पर पहचानने की दिशा में ‘‘सुरक्षा समिति’’ निरंतर सजग रहेगी । एक श्रम मूल्य का आंकलन जो कुछ भी ग्राम स्वराज्य स्थापना दिवस में प्रमाणित रहेगा, उसकी गति के प्रति सतर्क रहेगा । निपुणता, कुशलता, कार्य गति, समय व साधन के कुल संयोग से श्रम का मूल्यांकन होगा। जैसे किसी एक वस्तु के निर्माण कार्य से, जिसका फलन स्थापना दिवस पर यदि एक रहा और बाद में यदि दो, तीन या चार हो गया, ऐसी अर्हता को ग्राम में सर्व सुलभ कराने का दायित्व ‘‘सुरक्षा समिति’’ का होगा । इसी प्रकार प्रत्येक वस्तु के सम्बन्ध में उत्पादन गति में वृद्घि करने और विनिमय में उसकी समृद्घि के अर्थ को सार्थक बनने का दिशा में कार्य सुरक्षा समिति करेगा। 
                    2. लाभ-हानि के सम्बन्ध में सतर्क रहना । (अनावश्यक लाभ और असहनीय हानि न होने के लिए सतर्क होना) उसके लिए सभी व्यवस्था प्रदान करना । 
                    3. वस्तु की उत्पादन के आधार पर मूल्यांकन करने में सतर्क रहना व कार्य रूप  देना ।
                    4. सभी विनिमय की संभावना को बनाए रखने में सतर्क रहना व प्रोत्साहित करना । (अध्याय: 8, पृष्ठ नंबर: 185)
                    • स्वास्थ्य संयम कार्य व्यवस्था समिति
                    ग्राम स्वास्थ्य समिति : कार्य एवं दायित्व
                    ग्राम के सभी व्यक्तियों के स्वास्थ्य एवं संयम की जिम्मेदारी ग्राम स्वास्थ्य समिति की होगी । यह समिति शिक्षा संस्कार समिति के साथ मिलकर कार्य करेगी । आवश्यकतानुसार  स्वास्थ्य संयम संबंधी पाठ्यक्रम और कार्यक्रम को तैयार कर शिक्षा में सम्मिलित कराएगी । ग्राम में चिकित्सा केन्द्र की व्यवस्था, योगासन, व्यायाम, अखाड़ा, खेल कूद व्यवस्था, स्कूल के अलावा खेल मैदान (स्टेडियम), सांस्कृतिक भवन क्लब आदि व्यवस्था का दायित्व ग्राम स्वास्थ्य समिति का होगा। समिति स्थानीय रूप से उपलब्ध जड़ी-बूटियों द्वारा औषधि बनाने के लिए आवश्यकीय व्यवस्था करेगी। इसके साथ ही पशु चिकित्सा केन्द्र की व्यवस्था का दायित्व भी स्वास्थ्य समिति का होगा । समिति ‘‘समन्वित चिकित्सा’’ (आयुर्वेद, एलोपैथी, होम्योपैथी, यूनानी, योग, प्राकृतिक, मानसिक) के उन्नयन की व्यवस्था करेगी। 
                    सब ग्राम वासियों को स्वास्थ्य, व्यवहार, आचरण सम्बन्धी मूल्यों का मूल्यांकन, उपयोगिता व प्रयोजन मूलक पद्घति से समिति व्यवस्था प्रदान करेगी । अलंकार, प्रसाधन कार्य, शरीर स्वच्छता, महिलाओं व बच्चों को रोग-निरोधी उपाय, और सीमित व संतुलित परिवार के रूप में व्यवहृत होने के लिए व्यवस्था प्रदान करेगी । ऐसी जागृति के लिए व्यापक कार्यक्रम को समिति संचालित करेगी । सामान्य रूप में घटित अस्वस्थता को दूर करने के लिए, घरेलू चिकित्सा में प्रत्येक परिवार को अथवा प्रत्येक परिवार में एक व्यक्ति को प्रवीण बनाने के लिए विभिन्न कार्यक्रम चलाए जाएँगे । घरेलू चिकित्सा से रोग शमन न होने की स्थिति में स्थानीय केन्द्र द्वारा चिकित्सा होगी । वहाँ राहत न मिलने की स्थिति में, निकटवर्ती चिकित्सा केन्द्र में पहुँचाने और चिकित्सा सुलभ कराने की व्यवस्था ग्राम स्वास्थ्य समिति करेगी । चिकित्सा केन्द्र, चिकित्सालय, मातृत्व केन्द्र, प्रसवोत्तर केन्द्र की स्थापना यथा सम्भव ग्राम समूह परिवार सभा द्वारा किये जावेंगे । (अध्याय: 8, पृष्ठ नंबर: 189)
                    • कार्यक्रम सत्यापन घोषणा
                    इस भाग में विभिन्न समितियों द्वारा किये जाने वाले कार्यक्रमों को समिति आधार पर सत्यापन किया जायेगा। 
                    कार्यक्रम -1
                    1. समितियों का गठन कार्यकर्ताओं की पहचान व घोषणा। 
                    2. कार्यकर्ताओं में कार्य का बोध होने का सत्यापन ।
                    3. कार्यकर्ताओं में दायित्व, कर्त्तव्य, उद्देश्य बोध प्रवृत्ति व निष्ठा का सत्यापन । (अध्याय: 9, पृष्ठ नंबर:193)
                    • गाँव में अपरिचित व्यक्ति से परिचय प्राप्त करना । परिचय होने के स्थिति में सूचना ग्राम-परिवार-समूह-सभा सदस्यों को ऐसे व्यक्ति सहित प्रस्तुत करना यह हर ग्रामवासी का कर्त्तव्य होगा। (अध्याय:9, पृष्ठ नंबर:200)
                    • हर परिवार का अपने-अपने निवास व दरवाजा सड़क को पवित्र एवं हरियाली शोभनीय रूप में बनाये रखना कर्त्तव्य । 
                    आये हुए आगन्तुकों, अपरिचितों का परिचय प्राप्त करना कर्त्तव्य । 
                    आगंतुक :- अपरिचित व्यक्ति की उपस्थिति अपेक्षाओं के अनुसार में पहचानना, मार्गदर्शन ।
                    अभ्यागत :- अभ्युदयार्थ आमंत्रित नर-नारी का आगमन, सम्मान विधि से स्वागत करना ।
                    अतिथि :- आतिथ्यार्थ आवाहित नर-नारियों का आगमन में सेवा, सम्मान विधि से स्वागत करना।
                    आतिथ्य :- शिष्टता सहित अपने वस्तु व सेवा का अर्पण-समर्पण। (अध्याय: 9, पृष्ठ नंबर:200)
                    • जागृति सुलभता सहज घोषणा
                    ♦ हर जागृत मानव परिवार में शरीर सहज आयु अनुसार श्रम व कार्य करना, यह स्वयं स्फूर्त होना, स्वत्व-स्वतंत्रता-अधिकार के आधार पर है। 
                    ♦ शिशु काल तीन से पाँच वर्ष तक            - 3 से 5 वर्ष तक 
                     कौमार्य अवस्था पाँच से बारह वर्ष तक   -  5 से 12 वर्ष तक
                    युवावस्था बारह से बीस वर्ष तक            - 12 से 20 वर्ष तक 
                    प्रौढ़ावस्था                                            -  20 से 30 वर्ष तक 
                    परिपक्वावस्था                                     -  30 से 70 वर्ष 
                    परिपक्वावस्था सत्तर वर्ष के अन्तर      -  70 वर्ष के अनन्तर
                    वृद्घावस्था में निहित ज्ञान विवेक विज्ञान
                    में भागीदारी में प्रखर होना शरीर में 
                    क्रमिक शिथिलता
                    परिपक्वावस्था                                   -  परिपक्वता की
                    यही पीढ़ी से पीढ़ी उन्नत होने का            निरंतरता ही
                    प्रेरणा स्रोत जागृत परंपरा के अर्थ            परंपरा
                    में आयु आवश्यकता कर्त्तव्य घोषणा (अध्याय: 9, पृष्ठ नंबर: 201)
                    • शिशु काल से जागृति यात्रा घोषणा
                    1. शिशु कालीन लालन-पालन, पोषण-संरक्षण कार्यों का दायित्व व कर्त्तव्य अभिभावकों का है। 
                    2. मानव सन्तान का लालन-पालन, पोषण-संरक्षण का कार्य अभिभावक का है । इस परंपरा में उत्सव, प्रसन्नता, खुशियाली है। शैशवकाल के अनंतर पड़ोसी बन्धुओं का मानव संस्कार पक्ष में दायित्व  रहेगा ।
                    3. मानव में सभी सम्बन्धों मे सम्बोधन सभी परिवार-परंपरा में प्रचलित है । इसे अखण्डता सहज प्रयोजन सार्थकता के अर्थ में प्रमाणित करना जागृति है । (अध्याय: 9, पृष्ठ नंबर: 202)
                    • 5. सम्बन्धों का सम्बोधन, शिष्टता का दिशा निर्देशन सम्बोधन के साथ प्रयोजन भाव-भंगिमा, मुद्रा, अंगहार विधि से सन्तानों को निर्देशित करना हर अभिभावकों, पड़ोसी बन्धु, मित्रजनों का कर्त्तव्य -दायित्व होता है। (अध्याय: 9, पृष्ठ नंबर:203)
                    • 7. कौमार्य काल में ग्रामवासी, शिक्षा-संस्था व अभिभावकों का संयुक्त रूप में जीने के आधार पर सफल बनाने का कर्त्तव्य -दायित्व रहेगा । (अध्याय: 99, पृष्ठ नंबर:203)
                    • 13. कम से कम सोलह-अठ्ठारह अधिक से अधिक बीस वर्ष की अवस्था में श्रम-साध्य कार्यों को करने का दायित्व-कर्तव्य होना आवश्यक है । (शिशु काल से जागृति यात्रा घोषणा) (अध्याय: , पृष्ठ नंबर:204)
                    • न्याय-सुरक्षा सर्व सुलभ होने का घोषणा
                    1. ग्राम में रहने वाले सभी परिवारों में न्याय-सुरक्षा सुलभता का परीक्षण, निरीक्षण कार्य समिति-सदस्य, परिवार-समूह-सभा के सदस्यों का संयुक्त कर्त्तव्य रहेगा । ग्राम मोहल्ला परिवारों में हुए न्याय सुरक्षा सुलभता सफलता का हर परिवार में-से-के लिए सत्यापन और शोध संभावना आवश्यकताओं पर कार्य गोष्ठी परिवार समूह सभा के द्वारा निर्णयों को लिपिबद्घ करना। (अध्याय:9 , पृष्ठ नंबर:211)
                    • विश्व परिवार सभा में मौलिक अधिकार के रूप में बाकी अन्य नौ परिवार सभाओं में से सात परिवार सभाओं में पाँचों आयामों का कार्य गति अधिकार, दायित्व, कर्त्तव्य वर्णित है । यह सभी विश्व परिवार सभा में समाहित रहेगा ही । इसके साथ-साथ विश्व परिवार सभा के निकटवर्ती प्रधान राज्य सभा में प्रमाणित कार्यकलापों को पूर्णत: निरीक्षण परीक्षण पूर्वक अपने निष्कर्षों से अवगत कराने का अधिकार रहेगा । साथ में आवश्यकीय प्रस्ताव रखने का अधिकार भी रहेगा । जिस पर कार्य गोष्ठी पूर्वक स्वीकार करने का व्यवस्था रहेगा । (अध्याय: 10, पृष्ठ नंबर:224-225)
                    • सेवक (सहयोगी ) की सार्थकता कर्त्तव्य निर्वाह से है। 
                    स्वामी (साथी) की सार्थकता दायित्व निर्वाह करने में से है। (अध्याय: 12, पृष्ठ नंबर:250)
                    • परिवार सम्बन्धों को पहचानना, दायित्व व कर्त्तव्य का निर्वाह करना मानवत्व है। (अध्याय: 12, पृष्ठ नंबर:300) 
                    • अनुपातीय रूप में खनिज वनस्पतियों का सुरक्षित किया जाना मानवत्व है। दश सोपानीय परिवार मूलक स्वराज्य व्यवस्था, यथा विश्व परिवार सभा से परिवार सभा का कर्त्तव्य और दायित्व है।परिवार सभा से यह विश्व राज्य परिवार-सभा का कर्त्तव्य और दायित्व है। शिक्षा में इसका सार्थक अध्ययन आवश्यक है। यह मानवत्व है। (अध्याय: 12, पृष्ठ नंबर: 303)
                    • मानवीय शिक्षा-संस्कार का दायित्व- कर्त्तव्य परिवार-सभा से विश्व परिवार-सभा में दायित्व- कर्त्तव्य रूप में निहित रहता है। इसका निर्वाह योग्य होना मानवीयता है। (अध्याय: 12, पृष्ठ नंबर: 303)
                    • शिक्षा-संस्कार सर्वतोमुखी समाधानकारी ज्ञान-विवेक-विज्ञान सम्पन्न होने का प्रमाण मानवत्व है। यह परंपरा का कर्त्तव्य हर मानव संतान का अधिकार है। यह मानवत्व है।  (अध्याय: 12, पृष्ठ नंबर: 303)     

                    स्त्रोत: अस्तित्व मूलक मानव केन्द्रित चिंतन सहज मध्यस्थ दर्शन (सहअस्तित्ववाद)
                    प्रणेता -  श्रद्धेय श्री ए. नागराज जी 

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