Tuesday 19 September 2017

शिक्षा - संदर्भ:मानव अनुभव दर्शन

मानव अनुभव दर्शन (अध्याय:1,3,4,7,9, संस्करण:2011,मुद्रण-2016 , पेज नंबर:)
  • आत्म बोध और ब्रह्म अनुभूति के लिए सहज जिज्ञासा है। यह मानव परम्परा में जागृत शिक्षा संस्कार पूर्वक समाधानित सार्थक होना पाया जाता है।(अध्याय:1, पेज नंबर:3)
  • धीरता, वीरता, उदारतापूर्ण स्वभाव, पुत्रेषणा, वित्तेषणा, लोकेषणा पूर्ण विषय प्रवृत्तियाँ तथा न्याय, धर्म एवं सत्यता पूर्ण दृष्टि ही मानवीयता की महिमा है। जिसके संरक्षण हेतु संस्कृति, सभ्यता एवं विधि व्यवस्था का प्रणयन शिक्षापूर्वक एवं जागृति के लिए सर्वसुलभ होता है। अनुभवपूर्ण मानव में मानवीयतापूर्ण व्यवहार स्वभावत: पाया जाता है। (अध्याय:3, पेज नंबर:25)
  • ज्ञानावस्था की इकाई में किसी भी प्रकार के संस्कार से संस्कारित होने के पूर्व किसी न किसी पूर्व संस्कार की विद्यमानता स्वभाव के रूप में पायी जाती है। पूर्व संस्कार अध्ययन एवं वातावरण अग्रिम संस्कारों की स्थापना के लिए अनिवार्य कारण है। संस्कारगत स्वभाव दो श्रेणियों में गण्य है:-
1. मानवीयतापूर्ण,
2. अतिमानवीयतापूर्ण,
अमानवीयतावादी प्रवृत्ति है, जो संस्कार नहीं है।
ब्रह्मानुभूति योग्य क्षमता, योग्यता, पात्रता से संपन्न होने पर्यन्त गुणात्मक संस्कारपूत होना आवश्यक है। यही अभ्यास पूर्वक अभ्युदय का प्रमाण है।
समाज ही व्यक्ति के संस्कारों के परिमार्जन, परिवर्तन और प्रस्थापन का कारण है। अभ्युदयकारी अध्ययन, व्यवस्था एवं तदनुसार आचरण ही समाज है।
समाज ही व्यवस्था एवं शिक्षा पूर्वक जागृत वातावरण को उत्पन्न करता है।(अध्याय:4, पेज नंबर:28) 
  • मानवीयता तथा अतिमानवीयता से संपन्न प्रत्येक मानव इकाई के स्वभाव को अविच्छिन्न बनाने योग्य वातावरण का निर्माण करना, शिक्षा एवं व्यवस्था का आद्योपांत कार्यक्रम है। यही आप्तों की आकाँक्षा है।(अध्याय:4, पेज नंबर:29)
  • ज्ञानावस्था में सभी मानव का आद्यान्त इष्ट ब्रह्मानुभूति ही है। अतएव मानव द्वारा मात्र उसी के अनुकूल व्यवसाय, व्यवहार, विचार, विधि-व्यवस्था, अध्ययन, शिक्षा-प्रणाली, विनिमय और उपयोग प्रणाली का प्रणयन एवं उन्नयन तथा पालन अनुसरण ही सर्व मंगलमय कार्यक्रम है। (अध्याय:7, पेज नंबर:37,41)
  • चैतन्य ज्ञानात्मा का अनुभव सीमान्तवर्ती क्षमता पूर्ण होने की संभावना है साथ ही उसके योग्य परिमार्जनशीलता चेतना विकास मूल्य शिक्षा भी प्रसिद्घ है।(अध्याय:7, पेज नंबर:38)
  • सजगता ही अनुभव क्षमता और सतर्कता ही समाधान क्षमता है। शिक्षा प्रणाली एवं व्यवस्था पद्धति की सीमा में सतर्कता-योग्य क्षमता को जन-सामान्य बनाने की व्यवस्था है।(अध्याय:9, पेज नंबर:48)

स्त्रोत: अस्तित्व मूलक मानव केन्द्रित चिंतन सहज मध्यस्थ दर्शन (सहअस्तित्ववाद)
प्रणेता -  श्रद्धेय श्री ए. नागराज 

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